गुरूजी के विषय मे

श्री कपालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती बामाखेपा वंशावली के सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुत महातांत्रिक हैं जिनका तंत्र विद्या के प्रचार में मूल योगदान रहा है। आज उनकी गणना विश्व के सर्वोत्तम वैदिक गुरुओं में होती है। वे श्री श्री १००८ कपालिक महाकाल, कपालिक बाबा, इत्यादि नामों से भी जाने जाते हैं। उनका पूर्ण जीवन सरल, धार्मिक तथा कौल तंत्र विद्या और उसके प्रख्यापन को अर्पित है।

श्री कापालिक महाकाल का जन्म सन् १९४० में पंजाब के रड्डेवाल ज़िले में हुआ। वे अत्यन्त छोटे थे जब उन्हें परिवार सहित दिल्ली जाना पड़ा। वे पढ़ाई में चतुर थे। उन्होने इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से एल.एल.एम की डिग्री पूर्ण की तथा मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से एम.एस.डबल्यू की शिक्षा पूर्ण की। इसके बाद वे कोल् इंडिया नामक महारतन कंपनी में निर्देशक के पद पर नियुक किये गए। यही वह समय था जब उनके जीवन ने एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का अनुभव किया।

वे निकट चालीस वर्ष के थे जब उनका मन पदार्थवादी समाज के भोग - विलास से विमुख होने लगा और एक उद्देश्यपूर्ण जीवन की लालसा उनमे प्रबल होने लगी। अंततः, उन्होंने अपने घर-गृहस्ती और सांसारिक वैभव को त्याग कर अपने अनगिनत प्रश्नों के उत्तट ढूंढने का निश्चय किया।

वे दिशाहीन भटक रहे थे जब एक श्मशान मे उनका सामना महासिद्ध तांत्रिक श्री योगानंद सरस्वती महाराज से हुआ। वे ३ वर्षों तक उनके निकट रह कर उनकी क्रियाओं का आचरण करते रहे। परिणामस्वरूप श्री योगानंद महाराज ने उनसे प्रसन्न हो कर उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। अगले १३ वर्षों तक अपने गुरु के दिशा - निर्देशों के अनुरूप वे विविध तांत्रिक सिद्धियों का अभ्यास करते रहे। उन्हें “महाकाल” का सम्बोधन भी अपने गुरु से ही प्राप्त हुआ। श्री योगानंद महाराज स्वयं एक वैरागी साधक थे जिसके कारन वे विश्व मे तांत्रिक कला के ज्ञान का प्रचारण करने में अक्षम थे। अतः, उन्होंने यह कार्य अपने शिष्य को सौंपा।

अपनी गुरुकुल शिक्षा पूर्ण करने के बाद, श्री कपालिक महाकाल देश भर में विचरण करने लगे। उन्होंने अपना अधिकतम समय विभिन्न शक्ति पीठों में योग साधना करते हुए व्यतीत किया। अपने परिक्रमण काल में उन्होने अपने वस्त्रों का भी त्याग कर दिया और हर कठोर वातावरण का सामना दिगम्बरों की भांति करते रहे। श्मशाम-भूमि उनकी उच्च साधना पीठ थी, जहाँ वे अपनी तांत्रिक सिद्धियों और अघोरी विद्या का अभ्यास करते। इस काल में उन्होने प्रेत-पिशाच व अन्य प्रतिकूल शक्तियों पर नियंत्रण पाने की कला का भी ज्ञान प्राप्त किया।

श्री कपालिक महाकाल महाराज शिव - भैरव और माँ कामाख्या देवी (शक्ति का अवतार) के परम भक्त हैं। ऐसी कई कथाएं प्रचलित हैं जो उनकी अपार भक्ति का प्रमाण हैं। वे एक कपालिक हैं जो अपने अन्न एवं जल का सेवन कपाल पात्र से ही करते हैं। कपालिक का अर्थ है “कपल को धारण करने वाला”। माना जाता है की कपालिक दूसरों की कठिनाईओं को दूर कर उन्हे अपने सर (कपाल) पर ले लेने का कार्य करते हैं और यह कपाल पात्र उन्हें अपने इस उद्देश्य का स्मरण करते रहते हैं।

कपालिक तंत्र की विद्या से सम्बंधित कई गूढ़ कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि कपाल के अंदर विभिन्न देवताओं की असीम शक्तियाँ केंद्रित होती हैं, और कपाल में लिया गया हर खाद्य पदार्थ इन शक्तियों को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है जिसका अंत में प्रसाद मानकर सेवन किया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि वास्तव में कपालिक साधु शिव-भैरव की अनुकृति मे कपाल धारण करते है। ब्रह्मदेव के एक सर को काटने के कारन शिव-भैरव को कई समय तक उस कपाल को हाथ में लिए श्मशानों मे भटकना पड़ा था। १२ वर्षों तक प्रायश्चित करने के बाद, शक्ति की महिमा से, अंत मे उन्हें उस कपाल से मुक्ति मिली थी। अतः, “कपालिक” उन साधुओं को भी कहा जाता है जो अपने मनुष्य देह में शिव-भैरव को अवतीर्ण करते हैं। श्री कपालिक महाकाल सरस्वती सभी धारणाओं का आदर करते हुए अपने गुरूजी से प्राप्त परंपरा का निर्वाह पूर्ण सक्षमता से करते रहे हैं। उन्होंने अपना सारा समय अपने गुरु के दिए उत्तरदायित्व की पूर्ती को अंकित कर दिया है। आज भारत और अमरीका भर में उनके अनुचरों की संख्या सर्वाधिक है।

श्री कपालिक महाकाल कुछ वर्ष पूर्व तक अपना अधिकतम समय दिल्ली में रोहिणी में स्थित माँ कामाख्या आश्रम में अपने अनुचरों और उपगामियों के साथ व्यतीत करते थे जिसके उपरांत उन्होंने अपना स्थानांतरण हरिद्वार की ओर कर लिया। ३ वर्षों में एक बार वे कुम्भ के मेले मे भी अपना शिविर खड़ा करते हैं। देश-विदेश से अनेक श्रद्धालु अपने प्रश्नों और समस्याओं के साथ उनसे मिलने आते हैं।

श्री कपालिक भैरवानंद सरस्वती, अपने अपार दृग्विषय के कारण विषय भर में प्रख्यात हैं। मानव जाती के प्रति उनकी अथक सेवा भाव के लिए उन्हे वैश्विक शांति पुरस्कार से नवाज़ा जा चूका है। भारत के राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त है। आंध्र प्रदेश की जानी-मानी चिकित्सिका डॉ. भुवनेश्वरी इस महान तांत्रिक के जीवन पर एक पुस्तक की भी रचना कर रही हैं जिसके प्रकाशित होने की प्रतीक्षा आज पूरा संसार कर रहा है।

श्री कपालिक महाकाल भैरवानंद सरस्वती महाराज ने अपनी सिद्धि एवं तत्परता से विश्व-भर में अपनी एक अभूतपूर्व छवि का निर्माण किया है।

गुरुजी की भविष्यवाणियों